Evening Prayer

  • श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं, कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं, भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं , शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं , इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं, मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो , एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।

Morning Prayer

  • भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी ॥ लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी । भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ॥ कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता ॥ ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥ माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा ॥ बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार ॥।